कितना कुछ था मन में अपने
आज तक फिर क्यों कुछ कहना पाए
प्यार भी ना जाने कैसे कब हो गया जो
तुम्हे समझके भी सच में समझ ना पाए।
ना रोये ज़िंदगी में पहले कभी
उन् रोती आंखों ने पहली बार रुला दिया
कभी उन् आंखों में भी चाँद तारे थे
एक पल में वह सब बह के मोती हो गए।
सपने पर सच में अपने थे, अपने ही रहेंगे
इन्हें ना कोई लूटेगा ना सजाएगा अपने लिए
हँसते हँसते ह्योंही हम भी मिले थे कभी
अब चलो जुदा भी हो जाते है मुस्कुराते हुए।
एक सपना: karan
Monday, February 4, 2008
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